दरअसल, डॉल्फिन का सोने का तरीका इन्सानों से बिल्कुल अलग होता है। डॉल्फिन हमेशा पानी में रहती है, लेकिन सांस लेने के लिए उसे बार-बार सतह पर आना पड़ता है। उसकी सांस अपने-आप नहीं चलती है। अगर वह हमारी तरह सब कुछ भूल कर सोने लगी तो उसकी सांस रुक जाएगी और वह डूबकर मर जाएगी। यही वजह है कि डॉल्फिन को सोते हुए भी सांस लेने के लिए सचेत रहना पड़ता है। हमारी सांस नींद में भी अपने-आप चलती है तो हमें इसकी जरूरत महसूस नहीं होती है।
सोते वक़्त खुले रहती है एक आँख
सोते हुए भी सांस चलती रहे, इसके लिए डॉल्फिन कभी भी पूरी तरह नहीं सोती है। उसके मस्तिष्क का एक हिस्सा हमेशा जागता रहता है और दूसरा हिस्सा सांस लेने के लिए सचेत करता रहता है। इस दौरान उसकी एक आंख भी खुली रहती है। उसके शरीर की संरचना ऐसी है कि जब उसके मस्तिष्क का बायां हिस्सा सोता है तो दायीं आंख खुली रहती है और जब दायां हिस्सा सोता है तो बायीं आंख खुली रहती है। इसे कैट-नैपिंग कहा जाता है। एक समय मस्तिष्क का एक गोलार्द्ध सोता है, इसलिए इसे ‘यूनिहेमिस्फेरिक नींद’ भी कहा जाता है।
डॉल्फिन बारी-बारी से मस्तिष्क के दोनों गोलार्द्ध में सोती है, जिससे उसके पूरे शरीर को आराम मिलता रहता है। साथ ही शिकारियों के हमले और दूसरी बाधाओं से भी बचती है। अक्सर, वह पानी की सतह के बिल्कुल करीब बिना हिले-डुले, धीरे-धीरे तैरते हुए सोती है। इसे लॉगिंग कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान डॉल्फिन लॉग यानी लकड़ी के टुकड़े जैसे दिखती है। कभी-कभी वह कम गहराई में समुद्र तल पर भी सो जाती है, लेकिन उसे सांस लेने के लिए नियमित रूप से बाहर आना ही पड़ता है।
बिना ठहराव के लगातार तैरती है मादा डॉल्फिन
डॉल्फिन खुद भले ही कैट-नैपिंग करती हो, लेकिन अपने बच्चों को पूरी तरह आराम करने का मौका देते हैं। डॉल्फिन के बच्चे अपनी मां के साथ खींचकर तैरते रहते हैं। इसे ‘इचलन तैराकी’ कहा जाता है। इसके साथ ही बच्चे को 24 घंटे पानी में तैरते रहने के अनुकूल बनाने के लिए मादा डॉल्फिन गर्भ से ही तैयारी शुरू कर देती है।
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